जीवन और पृष्ठभूमि
"जागऽ ए भोजपुर, जागि उठऽ, पूरब में धउरत लाली बा" जेसी की कविता एक नवजागरण की ज्योति है, उसी की कौंध के छानी के ज्योंति जीवन पर जोर दीके भोजपुरी के गौरव की पहचान में कायमाब छोड़ा जाता है।
जन्म और शिक्षा
डॉ. राम विचार पाण्डेय जी का जन्म 2 मार्च 1900 को उत्तर प्रदेश, उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के गावों दामोदरपुर (गढ़वाड़) में हुआ था। उनके माता का नाम रुक्मिणी देवी और पिता का नाम हरि नारायण पाण्डेय था।
चिट्ठे साल की उम्र से ही उन्होंने हिंदी और भोजपुरी की कविताएं लिखना शुरू कर दी की जीवन के और जगीवन की गंदाई में एक खास चिहर की छाप छोड़ गए।
जनम, पढ़ाई आ चिकित्सा के संघर्ष
डॉ. राम विचार पाण्डेय जी के जनम 2 मार्च 1900 के, उत्तर प्रदेश के बलिया जिला के दामोदरपुर (गढ़वांड़) गांव में भइल रहे। उहाँ के माई के नाम रुक्मिणी देवी आ बाबूजी के नाम हरि नारायण पाण्डेय रहल। बचपन से ही डॉ. पाण्डेय जी में विद्या, अनुशासन आ साहित्य के गहिरा लगाव रहल।
बहुत कम उमिर में—चिट्ठे बरिस के रहबें तबे—हिंदी आ भोजपुरी में कविता लिखे लागलें। जीवन के सुख-दुख, समाज के सच्चाई आ लोक-मन के संवेदना उनकर रचना में गूंजे लागल, जवना से उ जीवन के गहराई में उतर गइलें।
सन् 1920 में छपरा जिला स्कूल से मैट्रिक पास कइला के बाद, ऊ कोलकाता चल गइलें, जहाँ प्रसिद्ध आयुर्वेदाचार्य गणनाथ सेन सरस्वती जी के सान्निध्य में आयुर्वेद के पढ़ाई शुरू कइनीं। 1930 में बलिया में आयुर्वेदिक इलाज के प्रैक्टिस चालू भइल। उनका चिकित्सा सेवा के जल्दे मान मिलल, लोग उन्हें भरोसे के डॉक्टर माने लागल।
बाकिर कुछ एलोपैथिक डॉक्टरन के ई तंज—"पाण्डेय जी त एमबीबीएस नइखन"—उनका आत्मसम्मान पर चोट कइलस।
एही बात से प्रेरित होके पाण्डेय जी 62 बरिस के उमिर में इंटरमीडिएट के परीक्षा पास कइलें, आ प्री-मेडिकल टेस्ट देके दरभंगा मेडिकल कॉलेज में दाखिला लेबे खातिर प्रयास कइलें। उमिर जादे होखला का कारण से कॉलेज से मना हो गइल, बाकिर ऊ हिम्मत ना हारलें। कोर्ट में केस लड़े के ठानीं, आ फैसला जब ऊ लोग के पक्ष में आइल, त 63 बरिस के उमिर में एमबीबीएस में दाखिला मिलल।
कुछे साल में पढ़ाई पूरा करके डिग्री लिहलें आ फेर एलोपैथी में भी वैसा ही कुशल बन गइलें जइसन आयुर्वेद में रहलें। एके साथे आयुर्वेद आ एलोपैथी दुनों में निपुण चिकित्सक बन के उ आपन अलग पहचान बनवलें।
रचनात्मक योगदान और प्रमुख साहित्य
डॉ. राम विचार पाण्डेय ना सिर्फ एक चिकित्सक रहे, बलुक भोजपुरी साहित्य के स्तंभ भी रहलें। उनका लेखनी में लोक जीवन, प्रकृति, सौंदर्य, सामाजिक चेतना, राष्ट्रीयता और आध्यात्मिकता के गहराई मिलेला। नीचे उनका प्रमुख रचनात्मक कृतियों के सूचीबद्ध विवरण प्रस्तुत बा:
📚 प्रमुख कविता संग्रह
1. बिनिया बिछिया (1954)
विषय: लोक जीवन, स्त्री सौंदर्य, प्रेम आ सामाजिक भावनाएं।
विशेषता: भोजपुरी लोक लय के साथ गीतात्मक छंद।
2. जीवन गीत (1957)
भाव: आत्मबोध, जीवन-दर्शन, क्षणभंगुरता।
प्रसिद्ध उद्धरण:
"जे कुछ कइलीं, कहलीं, बुझलीं – कवना में केतना पुन्नि रहल, कवना में केतना पाप?"
3. गुरुम्हा (अंतिम काव्य संग्रह)
विषय: भाषा, संस्कृति आ सामाजिक चेतना के समर्पित कविताएँ।
महत्व: भोजपुरी में गहन दार्शनिक काव्य के उत्कर्ष।
🟧 खण्डकाव्य:
आसा (1956)
छंद संख्या: 115 छंद
भावभूमि: आशा, विश्वास, उम्मीद और संघर्ष के बीच की उम्मीद।
शैली: पारंपरिक छंदबद्ध कविताई, सरलता आ गहराई के अद्भुत मेल।
🎭 नाटक:
शहीद मंगल पाण्डे
विषय: 1857 के स्वतंत्रता संग्राम, विशेष रूप से बैरकपुर छावनी के क्रांति।
प्रसिद्ध गीत:
सब केहू तैयार बा!
विशेषता: प्रेरणादायक गीत, ओजपूर्ण संवाद और जनक्रांति के चेतना से भरल प्रस्तुति।
महत्व: भोजपुरी रंगमंच के राजनीतिक-सामाजिक चेतना से जोड़ने वाला ऐतिहासिक नाटक।
🌾 प्रसिद्ध गीत और नवजागरण काव्य:
भारत महिमा – राष्ट्रगौरव और सांस्कृतिक चेतना
हुलास – ग्रामीण जीवन की ऊर्जा
उलटनि – सामाजिक व्यंग्य और कटाक्ष
जागरण गान – जनचेतना और नवजागरण गीत
जागऽ ए भोजपुर, जाग उठऽ – भोजपुरी अस्मिता के उद्घोष
🌙 प्रसिद्ध कविताएँ
अंजोरिया
चान का नियर मुंह चमकेला रधिका के,
चम-चम चमकेली जरी के चुनरिया।
भाव: प्रेम, प्रकृति और सौंदर्य के सम्मिलित बिंब।
प्रशंसा: राहुल सांकृत्यायन द्वारा सराहना – “ई कविता भोजपुरी के अमर बना देली।”
बसंत-बरनन
सरिसो का फूलवा का पीयर चदरिया में,
तीसिया का फूल के बतीसी चमकावेली।
भाव: ऋतु सौंदर्य, लोक जीवन आ प्रकृति के मिलल चित्रण।
भाषा शैली और सामाजिक योगदान
✍️ भाषा शैली और काव्य विशेषता
डॉ. पाण्डेय जी के काव्य शैली परंपरागत छंद और आधुनिक भाव के अद्भुत समन्वय रहे। ओहमें:
भोजपुरी के ठेठ लोकबोली के सुंदर प्रयोग,
उपमा, रूपक, अनुप्रास, आलंकारिक प्रयोग
आ ओज, करुण, श्रृंगार आ वीर रस के समावेश मिलेला।
उनकर भाषा ना केवल साहित्यिक बा, बलुक जनमानस के बोलचाल आ लोकसंस्कृति से जुड़ल बा। ऊ भोजपुरी भाषा के गंभीरता आ गरिमा के साबित कर के देखवले।
🌿 सामाजिक योगदान: बालिका शिक्षा
डॉ. पाण्डेय जी शिक्षा के माध्यम से सामाजिक परिवर्तन के सपना देखत रहलें। 1940 में दोसर विवाह का बाद उहांके पत्नी के सहयोग से बलिया के तीखमपुर गांव में रामरती बालिका इंटर कॉलेज के स्थापना भइल।
दू बीघा जमीन दान कइले पत्नी के नाम पर,
बालिका शिक्षा के मजबूत बुनियाद रखले।
आजो ऊ विद्यालय क्षेत्र में बालिका शिक्षा के दीप जरा रहल बा।
🌟 सम्मान और पहचान
उनकर साहित्यिक आ सामाजिक अवदान खातिर:
'भोजपुरी रत्न' के उपाधि से नवाजल गइल,
उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान अउर भोजपुरी अकादमी बिहार द्वारा सम्मानित कइल गइल,
मंचीय उपस्थिति आ कवि सम्मेलन में सक्रिय भागीदारी से भोजपुरी के आवाज बन गइलें।
🚀 राष्ट्रीय चेतना में भूमिका
भोजपुरी के स्वतंत्र अस्तित्व खातिर जागरुकता,
कविता, नाटक आ गीतन के जरिए जनजागरण के अलख,
स्वतंत्रता आंदोलन के प्रेरणा स्रोत ‘शहीद मंगल पांडे’ नाटक के मंचन से राष्ट्रीय भावनाओं के विस्तार।
डॉ. राम विचार पाण्डेय जी के जीवन भोजपुरी साहित्य, चिकित्सा, लोकसंस्कृति, आ सामाजिक चेतना के त्रिवेणी रहे। उहांके कविताओं में जे भाव, ओहमें जनमानस के आत्मा बसल बा। उनका रचना, सोच आ संघर्ष से भोजपुरी ना केवल भाषा के रूप में, बलुक सांस्कृतिक आंदोलन के रूप में भी मजबूती पावल।
उनका जीवन आ रचनावली पर शोध आ अध्ययन के आवश्यकता आजो बा, जेवना से भोजपुरी साहित्य के ऊँचाई मापल जा सके।
डॉ राम विचार पाण्डेय, जेकरा के 'भोजपुरी रतन' के खिताब मिलल रहे।
दरअसल ई सवाल मंगल पाण्डे के रहे, जे आजादी के लड़ाई में बैरकपुर छावनी के सैनिकन से कइले रहलन आ ऊ लोग एक सुर में जवाब देले रहलन-
सब केहू तइयार बा
सब केहू तइयार बा!
प्रयाण गीत के ई अमर पांती भोजपुरी के एकांकी नाटक ‘शहीद मंगल पाण्डे’ के रहे, जवना में अठारह सइ संतावन के पहिल स्वाधीनता-संग्राम के झांकी का संगहीं मंगल पाण्डे के क्रांतिकारी भूमिका के रेघरिआवल गइल रहे। नाटककार रहनीं डॉ राम विचार पाण्डेय, जेकरा के ‘भोजपुरी रतन’ के खिताब मिलल रहे। चाहे गीत होखे,खण्डकाव्य होखे भा नाटक-डॉ राम विचार पाण्डेय के भोजपुरी साहित्य के सिरिजना कबो बिसरावल ना जा सके। उहांके अइसन पहिल भोजपुरिया चिकित्सक रहनीं, जेकरा आयुर्वेदिक आउर एलोपैथिक-दूनों चिकित्सा पद्धति में महारत हासिल रहे।
दू मार्च,1900 के बलिया जिला के दामोदरपुर (गड़वाल) में माई रुक्मिणी देवी आ बाबूजी हरि नारायण पाण्डेय के सपूत राम विचार के जनम भइल। सन् 1920 में छपरा जिला स्कूल से मैट्रिक के परीक्षा पास कइला का बाद कोलकाता के नामी कविराज गणनाथ सेन सरस्वती के मार्गदर्शन में वैद्यक के पढ़ाई शुरू कइनीं आ उहां से वैद्य के उपाधि हासिल कऽके सन् 1930 में बलिया शहर से डॉक्टरी पेशा के सिरीगनेस कइनीं। आस्ते-आस्ते प्रैक्टिस चलि निकलल आ मरीजन के भीड़ बढ़े लागल।
एकरा पहिलहीं 1920 में पाण्डेय जी के बियाह हो गइल रहे आ दूगो लरिकी के उहांके बाप हो गइल रहनीं।ओकरा बाद पत्नी के निधन हो गइल रहे आ 1940 में उहां के दोसर बियाह भइल रहे।
डाॅ राम विचार पाण्डेय के दवाखाना त खूब चलत रहे,बाकिर एलोपैथिक के चिकित्सक आलोचना कइल शुरू कऽ दिहलन -‘आरे पाण्डेय जी एलोपैथिक डॉक्टर थोड़ही हउवन,एमबीबीएस कइले रहितन त एगो बातो होइत!’ अच्छा, त ई बात बा! वैद्य पाण्डेय जी के भोजपुरिया स्वाभिमान जागि उठल।
उहांके फेरु से आई एस-सी के इम्तिहान बढ़िया ढंग से पास कइनीं, ओकरा बाद प्री-मेडिकल टेस्ट दिहनीं आ ओहू में कामयाब भइनीं।बाकिर जब दाखिला लेबे उहांके दरभंगा मेडिकल कॉलेज में पहुंचनीं,त ओह घरी उमिर बासठ साल हो गइला के कारन एडमिशन ना हो पावल।पाण्डेय जी अब न्यायालय के दरवाजा खटखटवनीं,काहेंकि दाखिला खातिर न्यूनतम उमिर के त जिकिर रहे,बाकिर अधिकतम उमिर के कवनो सीमा तय ना रहे। आखिरकार उहांके कोशिश रंग ले आइल आ तिरसठ के उमिर में उहांके एमबीबीएस में दाखिला भइल। डिग्री मिलला का बाद उहांके प्रैक्टिस खूब चले लागल आ उहां के जरनखोरन के छाती प मूंग दराए लागल। अब एलोपैथी आ आयुर्वेदिक-दूनों पद्धति के उहां के मशहूर चिकित्सक हो गइल रहनीं।
पाण्डेय जी लरिकाइएं से हिन्दी आ भोजपुरी में कविता लिखे लागल रहनीं आ कविसम्मेलन में जहवां मोका मिले,उहांके कविता सुनावे पहुंचि जाईं।एक बेरि उहांके चित्तू पाण्डेय खांटी भोजपुरी में भासन सुननीं। सुननिहारन के भीड़ ठकचल रहे। चित्तू पाण्डेय जी कहनीं कि तूं अब भोजपुरिए में कविता लिखऽ!एकरा के गुरुमंत्र मानिके उहांके खांटी भोजपुरी में कविता लिखे लगनीं आ हिन्दी कवि सम्मेलन के मंच पर जा के भोजपुरी कविता के धाक जमावे लगनीं।
बलिया के चितबड़ागांव में सन् 1945 में एगो विराट कविसम्मेलन भइल,जवना में हरिवंश राय बच्चन, श्याम नारायण पाण्डेय, राहुल सांकृत्यायन नियर नामी-गिरामी हस्तियन का बीचे समस्यापूर्ति के विषय रखाइल रहे-ज्योत्स्ना। पाण्डेय जी ओह कविसम्मेलन में पहुंचिके दरखास्त दिहनीं कि चूंकि ज्योत्स्ना के भोजपुरी में अंजोरिया कहल जाला, एह से ऊहो समस्यापूर्ति पर आपन भोजपुरी कविता पढ़िहन।बहुत ना-नुकुर का बाद उन्हुकर दरखास्त मंजूर भइल आ उन्हुकर अंजोरिया कविता सभ पर भारी पड़ल।फेरु फरमाइश पर बसंत-बरनन कवितो सुनावेके परल। अंजोरिया के शुरुआती पांती रहे-
टिसुना लागल सिरी किसुना के देखे के त
अधिरतिए खा उठि चलली गुजरिया।
चान का नियर मुंह चमकेला रधिका के
चम-चम चमकेली जरी के चुनरिया।
अइसहीं ‘बसंत-बरनन’ में ऋतुरानी के एगो चित्र देखीं-
अइली बसंत ऋतु महुआ का कोंचवा में
झांकि-झांकि हंसि-हंसि आंखि मटकावेली,
सरिसो का फूलवा का पीयर चदरिया में
तीसिया का फूल के बतीसी चमकावेली।
एह दूनों कविता का बारे में महापंडित राहुल सांकृत्यायन अपना ग्रंथ ‘लोकभाषाओं का इतिहास’ में खूब चरचा कइनीं आ उहांके त इहां तक लिखि दिहनीं-
‘राम विचार पाण्डेय,जो भोजपुरी के एक उदीयमान कवि हैं, की दो कविताएं ‘अंजोरिया’ और ‘बसंत-वर्णन’ मुझे देखने-सुनने को मिली हैं। मेरा दृढ़ मत है कि पाण्डेय जी यदि भोजपुरी में आगे और कविताएं न भी लिखें तो उनकी इन्हीं दोनों कविताओं ने भोजपुरी को और इनको अमर बना दिया है। जहां तक मेरा अध्ययन है, गत 400वर्षों में किसी भी लोकभाषा में क्या, हिन्दी में भी ऐसी कविताएं सामने नहीं आई हैं।’
‘जागऽ ए भोजपुर,जागि उठऽ, पूरब में धउरत लाली बा’ जइसन एक से बढ़िके एक नवजागरन गान रचेवाला डॉ राम विचार पाण्डेय जी सही माने में भोजपुरिया स्वाभिमान के निठाह प्रतीक रहनीं।राष्ट्रीय चेतना जगावे के दिसाईं रचाइल उहांके ‘भारत महिमा’,’हुलास’,’उलटनि’,’जागरन गान’ जइसन गीतन के जवाब नइखे।’शहीद मंगल पाण्डे’ नाटक अपना गीतन आ बेजोड़ प्रस्तुति के लेके उनइस सइ साठिए से जहवां चरचा का केन्द्र में रहल,उहवें 1954 में छपल कविता-संग्रह ‘बिनिया बिछिया’ आ 1957में प्रकाशित ‘जीवन गीत’ में डॉक्टर साहब के अनमोल कविता के मोती जगमगात बा। उहांके खण्डकाव्य रहे 1956 में छपल ‘आसा’,जवना के एक सइ पनरह छंदन में आस-उमेदि आ बिसवास के दियना बारल गइल रहे। उहांके आखिरी जियतार कविता के किताब रहे ‘गुरुम्हा’,जवन भोजपुरी भाषा आ कविताई के उठान के सूचक बा।
डॉ रामविचार पाण्डेय जी ताजिनिगी भोजपुरी के उठान आ बढ़न्ती खातिर साधनारत रहनीं आ उहांके ऐतिहासिक अवदान खातिर भोजपुरी रतन के खिताब का संगहीं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान आउर भोजपुरी अकादमी, बिहार उहां के सम्मानित कऽके खुदे सम्मानित भइल।
चिकित्सा आ साहित्य का संगें-संगें डॉ राम विचार पाण्डेय के बालिका शिक्षो में महत्वपूर्ण योगदान रहल।दोसरकी पत्नी से हालांकि कवनो संतान ना भइल,बाकिर उन्हुकर भरपूर सहजोग रहल पाण्डेय जी के रचनन के सहेजे में, काहें कि अपना रचनन का प्रति उहांके लापरवाह रहत रहनीं।पाण्डेय जी बालिका शिक्षा के जरूरत महसूस करत तीखमपुर,बलिया में दू बिगहा जमीन कीनिके पत्नी के नांव प रामरती बालिका इण्टरमीडिएट काॅलेज के स्थापना कऽके मान्यता दियववनीं आ ऊ संस्थान आजुओ फरि-फूलि रहल बा।
1989 के फरवरी महीना में आशुकवित्व के जनमजात प्रतिभा के धनी आ भोजपुरी के अनमोल रतन राम विचार पाण्डेय जी आखिरी सांस लिहनीं।पाप-पुन्न के परवाह ना कऽके उहांके ताजिनिगी भोजपुरी माई आ मनुजता के सेवा कइनीं।उहां के इयादि के प्रणामांजलि उहेंके ‘जीवन गीत’ के उद्धृत करत-
दू दिन का एह जीवन में
ना सवंस मिलल जे सोचि सकीं,
जे कुछ कइलीं, कहलीं, बुझलीं
कवना में केतना पुन्नि रहल
कवना में केतना रहल पाप!
डॉ. राम विचार पाण्डेय: भोजपुरिया चेतना के अमर दीप
"जागऽ ए भोजपुर, जागि उठऽ, पूरब में धउरत लाली बा" — जब अइसन स्वर उठेला, त मन अपने आप ओह व्यक्तित्व के ओर खिंच जाला, जवन भोजपुरिया अस्मिता, साहित्य, चिकित्सा आ सामाजिक चेतना के आपन जीवन समर्पित क दिहलस। डॉ. राम विचार पाण्डेय ओह चिराग के नांव हउवें, जे भोजपुरी माटी के उजियारा से देश-दुनिया के रौशन कइले।
साहित्यिक अवदान:
डॉ. राम विचार पाण्डेय ना सिर्फ डिग्रीधारी डॉक्टर रहलें, बलुक भोजपुरी साहित्य के भी डॉक्टर रहलें। उनका लेखनी में लोक चेतना, सांस्कृतिक गौरव, सौंदर्यबोध आ क्रांति के स्वर मिलेला।
📚 प्रमुख रचनाएँ:
कविता संग्रह:
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बिनिया बिछिया (1954): लोकजीवन के मिठास भरा गीत।
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जीवन गीत (1957): आत्मबोध, मानवीय प्रश्न आ जीवन-दर्शन।
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गुरुम्हा: भोजपुरी कविताई के उत्कर्ष बिंदु।
खण्डकाव्य:
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आसा (1956): 115 छंद में रचल, आशा आ विश्वास के स्वर।
नाटक:
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शहीद मंगल पाण्डे: 1857 के क्रांति पर आधारित, ओजपूर्ण गीतन से भरल।
लोकगीत आ नवजागरण गीत:
-
भारत महिमा, हुलास, उलटनि, जागरण गान, आ जागऽ ए भोजपुर जेसे गीत भोजपुरी जनचेतना के जाग कइले।
प्रसिद्ध कविताएँ:
अंजोरिया
"चान का नियर मुंह चमकेला रधिका के,
चम-चम चमकेली जरी के चुनरिया"
बसंत-बरनन
"सरिसो का फूलवा का पीयर चदरिया में,
तीसिया का फूल के बतीसी चमकावेली"
एह दुनो कविता के महापंडित राहुल सांकृत्यायन अतना सराहले कि कह दिहनीं — "यदि पाण्डेय जी एहके बाद कवनो रचना ना भी लिखे लें, तबो ई कविता भोजपुरी आ ऊ खुद अमर हो गइल बानीं।"
साहित्यिक मंच आ पहचान:
बलिया के चितबड़ागांव में 1945 में भइल कविसम्मेलन में, जहाँ हरिवंश राय बच्चन, श्याम नारायण पाण्डेय, आ राहुल सांकृत्यायन जेसे दिग्गज मौजूद रहलें, उहाँ के "ज्योत्स्ना" पर आधारित भोजपुरी कविता ‘अंजोरिया’ एतना सराहल गइल कि भोजपुरी कविता के मंच पर अलग पहचान मिलल।
सामाजिक योगदान:
👩🏫 स्त्री शिक्षा के क्षेत्र में पहल:
आपन पत्नी रामरती देवी के नाम प बलिया के तीखमपुर में ‘रामरती बालिका इंटर कॉलेज’ के स्थापना कइनीं। आजुओ ई संस्था लड़िकियन के पढ़ाई के उजास दे रहल बा।
📜 भोजपुरी भाषा के संरक्षक:
भोजपुरी अकादमी (बिहार) आ उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान डॉ. पाण्डेय के "भोजपुरी रतन" से सम्मानित कइले। बलिया जिला में भोजपुरिया मंचन आ साहित्यिक विमर्श के परंपरा डॉ. पाण्डेय के बदौलत मजबूत भइल।
निजी जीवन:
डॉ. पाण्डेय जी के विवाह 1920 में भइल, जवनसे दूगो संतान (लरिकी) भइल। पत्नी के निधन के बाद 1940 में दोसरा विवाह कइनीं, बाकिर दोसरी पत्नी से संतान ना भइल। उहाँ के सहधर्मिणी साहित्यिक सृजन में पूरा सहयोग दीहलीं।
🕯️ अंतिम पड़ाव:
डॉ. राम विचार पाण्डेय फरवरी 1989 में अंतिम सांस लिहनीं। उहाँ के जीवन एगो प्रेरणा ह – आत्मगौरव, संघर्ष आ माटी से जुड़ाव के जीता-जागता मिसाल।
📌 निष्कर्ष:
डॉ. राम विचार पाण्डेय के जीवन एगो काव्यात्मक यात्रा ह, जवन विज्ञान, साहित्य, संस्कृति, सेवा आ संघर्ष से गुजर के भोजपुरी माटी के इज्जत दिलवलस। उहाँ के रचना आजु भी भोजपुरिया आत्मा के स्वर बा। आज के जरूरत बा कि अइसन लोकनायकन के हम पाठ्यक्रम, मंच आ समाज में वापस लाईं।
उहाँ के ‘जीवन गीत’ के शब्दन में:
"जे कुछ कइलीं, कहलीं, बुझलीं – कवना में केतना पुन्नि रहल, कवना में केतना पाप?"
— एह प्रश्न के जवाब शायद भोजपुरिया जनमानस दे सकी, जे आजुओ डॉ. पाण्डेय के रचना में अपन असल चेहरा देखेला।
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